GARIABAND जिला ब्यूरो गरियाबंद किशन सिन्हा
छुरा:- ब्लॉक मुख्यालय से महज 8 से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम रक्सी के राजस्व भूमि पर सालों पुराने प्रकृति प्रदत्त रूप से लगे सागोन साजा हर्रा सेंनहा भेलवा जैसे इमारती व औषधीय पेड़ों की कटाई का मामला निकल कर सामने आया है जहां पेड़ों की संख्या छोटे बड़े मिला कर लग भग 20 से 25 ग्रामीण द्वारा बताई गई है बड़ी बात यह है की यह क्षेत्र छुरा से रसेला मुख्य मार्ग से लगा हुआ है जहां पर अज्ञात शख्स के द्वारा आरा मशीन के माध्यम से पेड़ों की कटाई की गई है और कटाई के लगभग तीन से चार दिन बाद इस मामले का खुलासा हुआ कि यह पेड़ वन विभाग के अंतर्गत है या राजस्व विभाग के, दोनों विभाग के प्राथमिक कर्मचारी के समक्ष जांच में यह क्षेत्र राजस्व के अधिन होने की पुष्टि हुई जिसके बाद मौके पर मौजूद ग्रामीण के समक्ष पंचनामा तैयार कर कटे हुए पेड़ों को वन विभाग के कर्मचारी को सौपा गया किन्तु अब तक उन लड़कियों का उठाव नहीं हो पाया है समाचार लिखे जाने तक शासकीय अवकाश होने की वजह से अधिकारियों से और अधिक जानकारी तो नहीं मिल पाई है लेकिन अब तक इस विषय पर जांच व दोषियों के विरुद्ध किसी भी प्रकार की कार्यवाही लेस मात्र न हो सका है।
इस पुरे घटना क्रम पर ग्राम रक्सी के ग्रामीण व वन समिति के सदस्यों जिनमें शिवलाल सिन्हा, प्रेमसिंह ठाकुर दिनेश सिन्हा मन्नू मरकाम परस सिन्हा तुलश मरकाम नारायण ध्रुव पीरीत ध्रुव धनसिंह ध्रुव आदि ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि “जिन पेड़ों को वे सालों से देखते व वनोपज संग्रहण करते आ रहे थे उन्हें किसी अज्ञात शख्स द्वारा मशीन के माध्यम से कटाई करना अनुचित है इन पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए जिससे आगमी दिनों में बचे हुए पेड़ों का संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके”
*वृक्षारोपण का कार्य वृक्षो के संवर्धन के बिना असफल*
वहीं इस पुरे घटना क्रम से बड़ा सवाल यह उठता है की शासन प्रशासन एक तरफ तो पर्यावरण संवर्धन की दृष्टि से हर साल नये पौधे लगाने की बात करता है और दूसरे तरफ सालों साल बाद तैयार हुए पेड़ जो कि धड़ल्ले से काटे जा रहे हैं जिन पर सुस्त रवैया अपनाये हुए हैं जो कि असामाजिक तत्वों पर बूस्टर डोज का काम करता है वे छोटे-बड़े जंगलों को तकनीकी सहायता से और अधिक बल पूर्वक काटते नजर आते हैं एक समय था जब मानव श्रम से कार्य किया जाता था तो छोटे से छोटे कार्य को करने में घंटों और महिनों का वक्त लगता था लेकिन वर्तमान मशीनी युग से लोगों को सुविधा तो हुआ है लेकिन वन विकास की दृष्टि से देखा जाए तो यह मशीनी युग घातक सिद्ध हो रहा है चाहे बात करें आरा मशीन या जेसीबी जैसे मशीनों की जिससे वनों का विनाश प्रबल हो गया है।
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