MAHARASHTRA शरद साहेब या अजित दादा, बारामती के वोटर कन्फ्यूज
MAHARASHTRA घरों में ही बंट गए वोट, लोग बोले- दोनों को नाराज नहीं कर सकते
MAHARASHTRA ‘मेरे पति अजित पवार को वोट करते हैं और मैं शरद पवार को वोट देती हूं। हमारे घर में ही वोट बंट गए हैं। एक वोट दादा को, दूसरा वोट साहेब को, हमें किसी को नाराज नहीं करना है।’
रेशमा की तरह ही बारामती के ज्यादातर वोटर उलझन में हैं। महाराष्ट्र की बारामती सीट पहले NCP लीडर शरद पवार का गढ़ रही, फिर यहां उनके भतीजे अजित पवार का सिक्का चलने लगा। अब अजित पवार शरद पवार से अलग हो चुके हैं।
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MAHARASHTRA बारामती से 7 बार चुनाव जीत चुके अजित पवार फिर से मैदान में हैं। हालांकि, इस बार मुकाबला अलग है। उनके सामने शरद पवार ने युगेंद्र पवार को उतार दिया है। युगेंद्र, अजित पवार के भाई श्रीनिवास के बेटे हैं। बीते 57 साल में ये पहला मौका है जब पवार परिवार के दो कैंडिडेट आमने-सामने हैं।
हालांकि, लोकसभा चुनाव में शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले और अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार के बीच बारामती सीट पर मुकाबला हुआ था। तब सुप्रिया सुले 1.58 लाख वोट के बड़े अंतर से जीती थीं।
MAHARASHTRA में 20 नवंबर को विधानसभा चुनाव की वोटिंग होनी है। पवार Vs पवार की वजह से बारामती प्रदेश की सबसे हॉट सीट है।
पहले बारामती के बारे में जान लीजिए मुंबई से 261 किलोमीटर और पुणे से करीब 100 किमी दूर बारामती तालुका है। तालुका मतलब तहसील। 1967 में शरद पवार पहली बार यहीं से विधायक चुने गए थे। इसके बाद लगातार 6 बार चुनाव जीते।
1991 के उपचुनाव में शरद पवार
ने ये सीट भतीजे अजित पवार को दे दी। तब से इस सीट से अजित पवार ही विधायक हैं। जुलाई, 2023 में अजित पवार ने बगावत कर दी और शरद पवार की पार्टी NCP पर दावा ठोक दिया।
1967 के बाद करीब 30 साल तक शरद पवार ने बारामती में गन्ना किसानों, शुगर मिल्स और सहकारी संगठनों के लिए काम किया। इसी की बदौलत वे महाराष्ट्र के सबसे बड़े मराठा नेता बन गए। इसके बाद बारामती के डेवलपमेंट की जिम्मेदारी अजित पवार ने ली। उन्होंने शानदार सड़कें, एयरपोर्ट की तरह लगने वाला बस स्टैंड, आलीशान सरकारी इमारतें, पार्क और मंदिर बनवाए।
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MAHARASHTRA शरद पवार के गांव के लोग बोले- दादा और साहेब दोनों हमारे बारामती से करीब 10 किमी दूर कन्हेरी गांव हैं। इसी गांव के पास पवार परिवार का घर है। बारामती की राजनीति में कन्हेरी के हनुमान मंदिर की काफी अहमियत है। पहले चुनाव से लेकर आज तक शरद पवार ने हर बार प्रचार की शुरुआत इसी मंदिर में नारियल फोड़कर की है।
MAHARASHTRA हनुमान मंदिर के बाहर हमें कुछ बुजुर्ग मिले, जिन्होंने पवार परिवार की राजनीति को करीब से देखा है। ग्रामीण इलाकों में लोगों को हिंदी समझ तो आती है, लेकिन बोल नहीं पाते। हमने उनसे मराठी में ही बात की।
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सिर पर सफेद टोपी, माथे पर चंदन और टीका, सफेद दाढ़ी और गले में भगवा गमछा डाले नाना विट्ठल मिले। वे कहते हैं, ‘हाथों की पांचों उंगलियां एक जैसी नहीं होतीं, लेकिन दांत और होंठ तो हमारे हैं। हमें अपनी जुबान का संभलकर इस्तेमाल करना है। हमने तय किया है कि किसी के लिए बुरा नहीं बोलेंगे।’
शरद पवार के कैंडिडेट युगेंद्र के बारे में नाना विट्ठल कहते हैं कि ‘युगेंद्र पवार अभी राजनीति में नए हैं। उनके काम दिखते नहीं है। अजित पवार कई साल से काम कर रहे हैं, इसलिए उनके काम दिखते हैं। हमारे लिए तो दोनों पार्टियां एक ही हैं।’
पास में खड़े बुजुर्ग दादा पवार कहते हैं, ‘दोनों एक ही परिवार से हैं। हम यही सोच रहे हैं कि आखिर किसका सपोर्ट करना है। दादा और साहेब दोनों हमारे हैं। मुझे लगता है कि एक परिवार में अगर 5 सदस्य हैं, तो 3 किसी एक को वोट करेंगे और बाकी के लोग दूसरे पवार को वोट करेंगे।’