madhya-pradesh इंदौर हाईकोर्ट ने एमजीएम मेडिकल कॉलेज को बिना 30 लाख रुपए लिए मेडिकल स्टूडेंट के ओरिजिनल डॉक्यूमेंट लौटाने के डायरेक्शन दिए है। सरकारी वकील की तरफ से एनओसी देने को लेकर काफी बहस की गई लेकिन कोर्ट ने पहली बार एनओसी देने के भी डायरेक्शन दिए हैं।
एडवोकेट आदित्य संघी ने बताया कि याचिकाकर्ता मेडिकल स्टूडेंट प्रभात कुमार है। उसने साल 2022 में एमजीएम मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लिया था। उसे पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स पीडियाट्रिक (एमडी) सीट अलॉट हुई थी।
एडमिशन के समय स्टूडेंट ने अपने ओरिजिनल डॉक्यूमेंट कॉलेज में जमा किए थे। कॉलेज में उसके साथ रैगिंग हुई। जिससे परेशान होकर उसने सीट छोड़ दी। इसके बाद स्टूडेंट ने कॉलेज से ओरिजिनल डॉक्यूमेंट मांगे लेकिन कॉलेज मैनेजमेंट ने पेनाल्टी के तौर पर 30 लाख रुपए की डिमांड उससे की।
जब डॉक्यूमेंट नहीं मिले तो स्टूडेंट ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई। जिस पर मंगलवार को सुनवाई हुई। कोर्ट को बताया गया कि प्री पीजी की काउंसिलिंग 23 सितंबर से शुरू हो रही है। स्टूडेंट को उसमें शामिल होना है और इसके लिए ओरिजिनल डॉक्यूमेंट की जरूरत है।
कॉलेज को ओरिजिनल डॉक्यूमेंट बिना रुपए लिए लौटाने और एनओसी देने के डायरेक्शन दिए जाए। कोर्ट ने 20 सितंबर के पहले बिना 30 लाख रुपए ओरिजिनल डॉक्यूमेंट लौटाने और एनओसी देने के डायरेक्शन एमजीएम मेडिकल कॉलेज को दिए हैं।
सिर्फ एमजीएम ही वसूल रहा 30 लाख रुपए
कोर्ट को ये भी बताया गया कि सिर्फ मध्यप्रदेश में ही इस तरह 30 लाख रुपए की डिमांड सीट छोड़ने वाले स्टूडेंट्स से डॉक्यूमेंट वापस लौटाने के नाम पर की जा रही है। अन्य किसी भी स्टेट में इतनी पेनाल्टी नहीं वसूली जाती है। 2-3 लाख रुपए अधिकतम पेनाल्टी स्वरूप लिए जाते हैं। जबकि नेशनल मेडिकल कमीशन के द्वारा ये डायरेक्शन दिए जा चुके हैं कि राज्य 30 लाख रुपए लेने की शर्त को तुरंत वापस ले इसके बावजूद स्टूडेंट्स से वसूली की जा रही है।
कोर्ट की फटकार के बाद भी नहीं सुधर रहे डीन डॉ.दीक्षित
बार-बार कोर्ट से फटकार लगने के बावजूद एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन डॉ.संजय दीक्षित अपना रवैया नहीं सुधार रहे हैं। प्री-पीजी की सीट छोड़ने वाले स्टूडेंट्स से ओरिजिनल डॉक्यूमेंट वापस करने के नाम पर 30 लाख रुपए की डिमांड की जा रही है।
इंदौर हाईकोर्ट में इस तरह के कई मामले अब तक सामने आ चुके है। कोर्ट की तरफ से डीन को फटकार लगाई जा चुकी है। उन्हें कोर्ट में उपस्थित होकर माफी तक मांगनी पड़ी थी। कोर्ट की अवमानना करने पर जब दोबारा सुनवाई हुई तो डीन ने आदिवासी छात्रा के ओरिजिनल डॉक्यूमेंट बिना रुपए लिए वापस लौटाए। लेकिन बिना कोर्ट के हस्तक्षेप के डीन स्टूडेंट के डॉक्यूमेंट नहीं लौटा रहे है।
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