Indore-MGM ने डॉक्यूमेंट्स नहीं लौटाए तो हाईकोर्ट गया; बोला- रैगिंग से परेशान था
मैं डिप्रेशन-एंग्जाइटी की दवाइयां लेने लगा था। सोचा कि ऐसी डिग्री का क्या फायदा जिसे दवाइयां लेकर पूरी करना पड़े। एमजीएम मेडिकल कॉलेज में रेजिडेंट डॉक्टरों की हालत कोई बहुत अच्छी नहीं है। शिकायत के लिए डीन से मिलना भी इतना आसान नहीं है। ड्यूटी के नाम पर रैगिंग की जाती है।
मैंने एक बार लगातार 40 घंटे के ऊपर काम किया था। तब मैंने सिर पकड़ लिया था। सोचने-समझने की शक्ति खत्म हो जाती है। ये भी टेंशन रहता है कि कल सुबह दोबारा ड्यूटी पर जाना है। महिला-पुरुष कोई भी स्टूडेंट हो सभी के लिए ड्यूटी के घंटे इतने ही रहते हैं। महिला डॉक्टर भी परेशान रहती हैं। लेकिन सभी को कोर्स पूरा करना होता है। 30 लाख पेनाल्टी के कारण सब कुछ सहते हैं।
ये आपबीती है मेडिकल स्टूडेंट प्रभात कुमार की। उन्हें ऑल इंडिया कोटे में 2022 में एमजीएम मेडिकल कॉलेज में पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स पीडियाट्रिक (एमडी) सीट अलॉट हुई थी। एमजीएम कॉलेज में जब सहनशक्ति जवाब दे गई तब प्रभात ने पिछले साल कोर्स बीच में ही छोड़ दिया।
प्रभात ने कॉलेज से ओरिजिनल डॉक्यूमेंट मांगे, लेकिन मैनेजमेंट ने पेनाल्टी के तौर पर 30 लाख रुपए की डिमांड की। इस पर उसने हाईकोर्ट में याचिका लगाई। हाईकोर्ट के आदेश के बाद कॉलेज ने सभी डॉक्यूमेंट्स लौटाए और एनओसी दी। पढ़िए मेडिकल स्टूडेंट प्रभात कुमार की आपबीती…
बर्दाश्त के बाहर स्थिति हो गई तब कोर्स छोड़ने का फैसला लिया
मैंने ऋषिकेश से एमबीबीएस किया था। फिर एमजीएम मेडिकल कॉलेज इंदौर में साल 2022 में अक्टूबर-नवंबर के आसपास एडमिशन लिया था। जुलाई 2023 में मुझे मजबूरन सीट छोड़ना पड़ी। सीट छोड़ने का सबसे बड़ा कारण ड्यूटी टाइम का ज्यादा होना था। लगातार 36-40 घंटे तक ड्यूटी रहती थी। फिर ऑल्टरनेट ड्यूटी होती थी। फिजिकली और मेंटली फोकस नहीं रह पाते हैं। लगातार ड्यूटी करने से मेरी हेल्थ और मानसिक स्थिति पर असर पड़ने लग गया था। मैं डिप्रेशन में चला गया था।
मैंने डॉक्टर को दिखाया तो उनका कहना था कि इतना प्रेशर हैंडल नहीं कर सकते तो कोर्स डिस्कंटीन्यू करने का सोचना चाहिए। या फिर किसी तरह से कोर्स को कम्प्लीट करने की कोशिश करें। जब बहुत खराब स्थिति बन गई तब मुझे लगा कि डिग्री से जिंदगी ज्यादा प्यारी है। मैंने डिग्री के बजाय अपना जीवन चुना।
ड्यूटी चार्ट में 12 घंटे ड्यूटी लिखी रहती है। सरकार कहती है कि किसी भी रेजीडेंट से 12 घंटे से ज्यादा काम मत करवाइए, लेकिन प्रैक्टिकली ये फॉलो नहीं होता है। मेन पावर ज्यादा नहीं होने पर इसका पालन नहीं पाता। हम लोग पूरा सपोर्ट भी करते हैं। ज्यादा से ज्यादा टाइम देने में पूरी जान लगा देते हैं। आखिरकार हम भी तो इंसान ही है। हमारी भी सहन करने की एक सीमा है।
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