जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी का मनाया जन्मकल्याणक
टीकमगढ़। रविवार को चौत्र शुक्ल त्रयोदशी को टीकमगढ़ शहर
के सभी जिनालयों में जैन धर्म के 24 में एवं अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का जन्म कल्याणक बड़े ही उत्साह एवं धार्मिक कार्यक्रमों के साथ बनाया गया ।
रविवार को सुबह 7 बजे से सभी मंदिरों में श्रीजी का अभिषेक एवं शांति धारा एवं पूजन संपन्न हुई। इस बार महावीर जयंती मुनिश्री विलोक सागरजी एवं मुनिश्री विबोध सागरजी महाराज के सानिध्य में मनाई गई। प्रदीप जैन बम्हौरी ने बताया कि दोपहर 1 बजे से बाजार जैन मंदिर से जुलूस प्रारंभ हुआ जो शहर की प्रमुख मार्गाे से होता हुआ राजेंद्र पार्क पहुंचा जहां श्रीजी का अभिषेक एवं मुनि श्री के मांगलिक प्रवचन हुए। जुलूस में बग्गी ढोल नगाड़े बैंड बाजे बालक महावीर का पालना आचार्यश्री का कटआउट चल रहे थे। युवक एवं युवतियां नृत्य करते हुए चल रहे थे अनेक मंदिर के विमान में श्रीजी विराजमान थे। महिला मंडल अलग-अलग ड्रेस में चल रही थी। सिंधी धर्मशाला के पास पूर्व विधायक राकेश गिरी गोस्वामी ने श्रीजी की आरती उतारी एवं मुनि श्री से आशीर्वाद प्राप्त किया ।
मुनिश्री ने अपने प्रवचनों के माध्यम से बताया कि हजारों वर्ष पहले भगवान महावीर स्वामी का इस भारत की वसुंधरा पर जन्म हुआ था उनके सिद्धांत आज भी संपूर्ण विश्व के लिए प्रेरणादाई है उन्होंने कहा था कि किसी भी जीव को कष्ट नहीं पहुंचाए किसी भी जीव को दुरूखी नहीं करें स्वयं जिए एवं दूसरों को जीने का अधिकार दें यही महावीर स्वामी की प्रमुख शिक्षा रही। जैन धर्म के अनुसार समय समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है। जो सभी जीवों को आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते है। तीर्थंकरों की संख्या चौबीस ही कही गयी है। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी काल की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे और ऋषभदेव पहले हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेद-भाव जिस युग में बढ़ गया। उसी युग में भगवान महावीर का जन्म हुआ। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया।