राम मंदिर निर्माण सामाजिक समता का प्रतीक -अवइरल अमिताभ जैन

*राम मंदिर निर्माण सामाजिक समता का प्रतीक है : अविरल अमिताभ जैन*

22 जनवरी 2024 संपूर्ण भारत के इतिहास में स्वर्णिम शब्दों में अंकित होने जा रही है क्योंकि इस शुभ दिन पर लंबे समय से चले आ रहे राम मंदिर विवाद का संपूर्ण रूप से अंत होकर प्रभु श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है। इन सब के बीच सबसे राहत की बात ये है की ये सब बहुत ही शांत और सौहार्द पूर्ण रूप से हुआ है।
भगवान राम भारत के कण कण में विद्यमान है, वे ही भारत की संस्कृति भी है इस बात में कोई दो राय नहीं है। प्रभु श्री राम का रामराज्य पूर्व के भारत से लेकर आज के भारत तक, हर शासक का सपना रहा है। हर प्रकार की सरकार यही स्थापित करना चाहती है की उसकी नीतियां रामराज्य की नीतियों के समान जन हित कारी है।
यहां यह स्पष्ट करना आवश्यक है की रामराज्य कोई धार्मिक राज्य की स्थापना नही है अपितु ये तो वसुदेव कुटुंबकम की भावना से बनी सभी को समिलित कर राज्य करने की नीति है जिसमे कोई भेद भाव नहीं हो और सभी विकास में बराबर के भागीदार हो।
भारतीय पुरातत्व और शास्त्र से स्पष्ट होता है की प्रभु राम का संबंध तो पूरे भारत भूमि से रहा है लेकिन मुख्य रूप से अयोध्या उनमें मुख्य है क्योंकि ये भगवान की जन्म और कर्म स्थली रही है। इतिहास के पन्नो से ही स्पष्ट होता है की कुछ विदेशी आक्रांताओं द्वारा मंदिर की जगह पर किसी अन्य प्रकार का ढांचा बनवा दिया गया था जो सम्पूर्ण रूप से भारतीय संस्कृति पर आघात करने के उद्देश्य से ही किया गया था। जिस काल खंड में ये हुआ था उस समय ऐसा होना लगभग आम बात हो चुकी थी अर्थात शासकों द्वारा एक सामाजिक न्याय बना दिया था, क्योंकि एसे कई मंदिरों के साथ यही हुआ था। उस समय मंदिरों को तोड़ कर उन पर अन्य ढांचे बनवा दिए जाते थे।
एक प्रकार से ऐसा करना उस समय के शासकों ने उद्देश्य बना लिया था ताकि भारतीय संस्कृति की सामाजिक एकता, सहिष्णुता और धर्म पालन करने की भावना को नष्ट करके भारत की संस्कृति को खंडित करदे। भारत की संस्कृति रही है की जो भी यहां आया बह भारत का ही होकर रह गया। यहां एक तरफ वेदों के सिद्धांत बताए जाते है तो बही दूसरी ओर चार्वाक दर्शन भी है। यहां जैन ग्रंथ और मार्ग बताने वाले हुए तो बुद्ध के मार्ग पर चलने वाले भी स्वीकार हुए। यहां ईसाई धर्म आया तो उसको भी स्वीकार किया गया, पारसी धर्म के लोगो को भी उनके ऊपर हो रहे शोषण के बाद भारत ने जगह दी तो बही इस्लाम धर्म के सूफी संतों और शरियत कानून को भी स्वीकार किया गया है। लेकिन जब हिंदू मंदिरों को तोड़ कर उनकी जगह पर किसी एक धर्म विशेष को ही लोगो पर थोपा जाने लगा तब भारत की सामाजिक समरसता और समता की संस्कृति पर आघात हुआ।
इस आघात को भारतीयों द्वारा लगभग 400 वर्ष तक सहन किया गया और उसी भारतीय संस्कृति की ध्वजा को पकड़े हुए फिर से भारतीयों द्वारा जब अयोध्या मंदिर को पुनः स्थापित करने की बात आईं तो भारतीयों ने कानूनी रास्ते से अपना हक मांगा। भारत की सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जब भारतीयों के पक्ष में अयोध्या विवादित भूमि को अयोध्या ट्रस्ट के नाम किया गया तब जाकर 400 वर्ष से चली आ रही सामाजिक असमानता और असमता दूर हुई क्यों की भगवान राम का मंदिर होना और उस पर जबरन अतिक्रमण कर तोड़ा जाना सामाजिक असमंता थी तो आज बापिस बही हक मिलना सामाजिक समता है।

 

 

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