तारीख 16 सितंबर। जगह-ओंकारेश्वर। वक्त- रात के 3.00 बजे। लोग गहरी नींद में थे। अचानक हूटर बजने लगा। ज्यादातर लोग समझ नहीं पाए कि हूटर क्यों बज रहा है? नींद टूटी तो देखा कि चारों तरफ पानी ही पानी है। घर-दुकान सब डूबे हैं।
पानी उतरा तो चारों तरफ सिर्फ तबाही के निशान बाकी थे। सड़कें तक बह गई थीं। कच्चे मकान टूट चुके थे। करीब एक हजार कच्ची-पक्की दुकानें भी बह गई थीं। सड़कों पर ईंटें-पत्थर बिखरे पड़े थे। घरों से गृहस्थी और दुकानों से सामान बह गया था। नदी किनारे नावें गायब थीं। ऐसा लग रहा था कि जैसे सुनामी आई हो।
ये भयावह मंजर ओंकारेश्वर में मांधाता पर्वत के नीचे के क्षेत्र का था, जहां नर्मदा किनारे कई परिवार रहते हैं। डैम से छोड़े गए पानी ने पिछले 41 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। लोगों को इतना वक्त भी नहीं मिला कि गृहस्थी और दुकानों का सामान समेट सकें। मांधाता पर्वत पर बन रहे एकात्म धाम की लाइफ लाइन परिक्रमा पुल डूब गया। दो दिन बाद डैम से पानी बंद हुआ, तब जाकर इस पर वाहनों की आवाजाही शुरू हो पाई। अब इस पर राजनीति भी शुरू हो गई है।